प्राचीन ताम्र नगर ही वर्तमान सोजत नगर

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विगत वैभव एवं अतीत की राजनीतिक उठा पटक का मौन साक्षी सोजत का खंडित दुर्ग प्राचीन कालीन ताम्र नगर  तांबावती नगरी के भग्नावशेषों पर स्थापित है।  इतिहासकार डॉक्टर उदय सिंह डिगार के अनुसार सुकड़ी नदी के मुहाने पर बसा यह सोजत ,प्राचीन समय में शुददंती (शुद्धनंती) नामक स्थान था, जो कि ताम्र (तांबे )की खानों के कारण ताम्रवती (ताबावती, त्रांबावती) नगर के नाम से विख्यात रहा। मारवाड़ के इतिहास अनुसार कालांतर में यह तंबावती नगरी के विखंडित हो जाने से सन 1054 ई (विक्रम संवत 1111 में)  हुल(हुला) नामक क्षत्रियों ने  सेजल माता के नाम से इसे पुनः बसाया। इस कारण सेजल माता के नाम से इसका नामकरण सेजल या सेजत हो गया होगा जो अपभ्रंश वर्ष धीरे-धीरे सोजत हो गया होगा, ऐसा अनुमान है।  इस सोजत पर परमार , हुला, सोनिगरा चौहान , सिंघल राठौर, सोलंकी ,मेवाड़ के सिसोदिया, मारवाड़ के राठौर समेत मुगलों का समय-समय पर अधिकार होना पाया जाता है ।अतीत के गौरव इस सोजत दुर्ग का निर्माण मारवाड़ के शासक राव जोधा के पुत्र निंबा( नीमा) द्वारा सन 1460 इसी के आसपास  शिरडी नामक डूंगरी पर किए जाने का उल्लेख पाया जाता है, वही ऐतिहासिक ख्यातो में मारवाड़ जोधपुर के शक्तिशाली शासक राव मालदेव द्वारा यह दुर्ग निर्माण किए जाने का वृतांत मिलता है।  यह सोजती दुर्ग मारवाड़ राज्य का प्रमुख सुरक्षा प्रहरी कवच दुर्ग रहा है । अतीत के ऐतिहासिक संघर्षों का सतत साक्षी माना जाता है । मारवाड़ नरेश मालदेव द्वारा सोजत के दुर्ग के चारों ओर सुदृढ प्राचीर का निर्माण करवाया गया था । मारवाड़ के स्वाभिमान एवं स्वतंत्रता प्रिय शासक (फॉरगॉटन हीरो ऑफ मारवाड़) मारवाड़ का भूला बिसरा महानायक के नाम से प्रसिद्ध राव चंद्रसेन की राजधानी भी इस सोजत दुर्ग को होने का गौरव प्राप्त है ।समय अंतर में बादशाह अकबर ने  राव मालदेव के अन्य पुत्र राम को सोजत दिया गया।क इसी क्रम में मोटा राजा उदय सिंह को भी यह सोजत जागीर में मिला था।  मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा सन 16 07 ईस्वी में राठौर कर्मसेन को सोजत इनायत किया गया था। मारवाड़ के स्वाभिमान एवं विगत वैभव के प्रतीक सोजत ने सतत संघर्षों का सामना करने का इतिहास रचा है।  सन 1807 ईस्वी में यहां जोधपुर राज्य की टकसाल भी स्थापित की गई थी।  यह दुर्ग मारवाड़ का सशक्त प्रहरी दुर्ग रहा है ,जहां पर धरती पुत्रों के शहादत एवं बलिदान का गौरव   खंड-खंड बिखरा पड़ा है ।यहां के भग्नावशेष , बुर्जे,कंगूरे,  आदि गौरवशाली अतीत को अपने आंचल में समेटे मातृभूमि के लाडलो के दुश्मनों से लड़ते लड़ते कट कट कर  रक्त रंजित शहादत की याद दिलाते हुए से प्रतीत होते हैं   कालांतर में जोधपुर के शासक  विजयसिंह ने सोजत में एक अन्य पहाड़ी पर नरसिंहगढ़ नाम से नया दुर्गा भी बनवाया जिसके चारों ओर गुलाबराय पासवान द्वारा परकोटा खिंचवा जाने का भी उल्लेख मिलता है।  अस्तु सोजत का दुर्ग प्राचीन कालीन, मध्यकालीन एवं आधुनिक कालीन इतिहास का मौन साक्षी है ,जिसके भग्नावशेष  बलिदानों गौरव गाथा गाते से प्रतीत होते हैं । मातृभूमि के गुमनाम शहीदों को सत सत नमन।

सादर।

डॉ उदयसिंह डिगार, प्रांत उपाध्यक्ष, इतिहास संकलन समिति।

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