“राम झरोखा मंदिर का सच! वसीयत की गुत्थी में उलझा सिरोही: आस्था की ज़मीन पर किसका कब्ज़ा?”
सिरोही, जिसे देव नगरी के नाम से जाना जाता है, आज अपने ही एक पवित्र प्रतीक – श्री राम झरोखा मंदिर और उससे जुड़ी धार्मिक सम्पत्तियों को बचाने की लड़ाई के बीच खड़ा है। यह केवल जमीन का विवाद नहीं, बल्कि सिरोही की आध्यात्मिक पहचान, परंपराओं और पीढ़ियों से जुड़े आस्था के केंद्र की अस्मिता का सवाल बन चुका है। जिस मंदिर से वर्षों से शहर के बड़े धार्मिक आयोजन, सरकारी रैलियां और शुभ कार्यों की शुरुआत होती रही है, वही मंदिर अब दस्तावेज़ों, वसीयत और कथित सौदों की उलझी हुई कहानी में फँसता दिख रहा है। पिछले कुछ समय से शहर में यह चर्चा तेज है कि श्री राम झरोखा मंदिर और उससे जुड़ी बहुमूल्य भूमि के टुकड़े बेचे जा रहे हैं या लीज पर दिए जा रहे हैं। नियंत्रण एवं सलाहकार समिति श्री राम झरोखा मंदिर ट्रस्ट के सदस्यों का दावा है कि वर्तमान महंत सीताराम दास द्वारा कई सम्पत्तियों का विक्रय और लीज बिना समिति की अनुमति के, अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किया जा रहा है। समिति का आरोप है कि ट्रस्ट जैसी सार्वजनिक आस्था से जुड़ी संस्था के निर्णय किसी एक व्यक्ति की मर्जी से नहीं, बल्कि सामूहिक सहमति, पारदर्शिता और लिखित अनुमति से होने चाहिए, जबकि ज़मीनी हकीकत इससे उलट नज़र आ रही है।सबसे गंभीर आरोप यह है कि इस पूरे प्रकरण में सरकारी तंत्र के कुछ प्रभावशाली अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। जिन पर मंदिर की जमीनों और धार्मिक धरोहरों की सुरक्षा का दायित्व था, उन पर यह आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने नियमानुसार सुरक्षा देने के बजाय निजी स्वार्थवश नियमों को दरकिनार कर सौदों को संभव बनाने में मदद की। इस विवाद का सबसे पेचीदा और रहस्यमय पहलू है – पूर्व महंत जयराम दास की वसीयत। महंत जयराम दास, जो श्री राम झरोखा मंदिर और श्री राम–लक्ष्मण मंदिर के एकमात्र न्यासी माने जाते थे, उनके स्वर्गवास के बाद से ही यह सवाल लगातार उभर रहा है कि उन्होंने अपनी वसीयत में मंदिरों की जमीनों और सम्पत्तियों को लेकर क्या व्यवस्था की थी। आमजन को आज तक इस वसीयत की वास्तविक सामग्री के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। यही अनजान दस्तावेज़ अब विवाद और अविश्वास की जड़ बन चुका है। लोग पूछ रहे हैं – क्या वसीयत में मंदिर और ट्रस्ट की सम्पत्तियों की सुरक्षा, उपयोग और उत्तराधिकार के लिए कोई सख्त शर्तें दर्ज थीं, या फिर “वसीयत” का नाम लेकर कुछ लोग अपने हिसाब से जमीनों पर कब्जे और सौदों को जायज़ ठहराने की कोशिश कर रहे हैं? इसी रहस्य ने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं – इन जमीनों के असली वारिस कौन हैं? क्या ये सम्पत्तियाँ किसी एक महंत या उनके उत्तराधिकारियों की निजी मिल्कियत हैं, या फिर यह पूरी तरह नियंत्रण एवं सलाहकार समिति श्री राम झरोखा मंदिर ट्रस्ट के अधीन है। जिस पर पूरे शहर की आस्था का हक़ जुड़ा हुआ है? मंदिर से जुड़े कई जागरूक आवाज़ें कह रही हैं कि जब तक मूल वसीयत और ट्रस्ट के सभी दस्तावेज़ खुले तौर पर सामने नहीं आते, तब तक किसी भी तरह के विक्रय, लीज़ या हस्तांतरण पर रोक लगनी चाहिए। आज स्थिति यह है कि – क्या श्री राम झरोखा मंदिर अपनी मूल पहचान, स्वरूप और जमीनों के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रह पाएगा, या फिर ज़मीन के खेल में इसकी आध्यात्मिक धरोहर को नुकसान पहुंचेगा? महंत जयराम दास की मूल वसीयत के आधिकारिक दस्तावेज़ सामने आएं, ताकि सच और झूठ की रेखा साफ हो सके।किसने मंदिर की जमीनों पर नज़रें गड़ाईं, किसने नियमों को मोड़ने की कोशिश की, और कौन लोग मंदिर की आस्था को बचाने के लिए खड़े हुए – इन सब सवालों के जवाब अब कागज़ों, रजिस्ट्री के दस्तावेज़ों और न्यायिक फैसलों में छिपे हैं। बहुत जल्द जब ये दस्तावेज़ सामने आएंगे, तब यह भी उजागर होगा कि सिरोही की इस आध्यात्मिक पहचान को किसने बचाने की कोशिश की और किसने इसे सौदों की मेज तक पहुंचा दिया।
