शहर चमका, जनता के सपने अधूरे सिरोही में दीपावली की रोशनी के नीचे लापरवाही की परछाई
सिरोही। हितेन्द्रसिंह चौहान/ मिरर न्यूज।
सिरोही। हितेन्द्रसिंह चौहान/ मिरर न्यूज।

टूटी सडक़ें और गमले, बढ़ता खतरा, घटती जिम्मेदारी
शहर के कई हिस्सों में सडक़ों की हालत बदतर है। गड्ढे यथावत हैं और नागरिक उनके कारण रोज खतरे का सामना करते हैं। पैलेस रोड के फुटपाथ पर रखे कई बड़े पौधों वाले गमलों की हालत जर्जर है, जिनकी मरम्मत करने की बजाय परिषद ने सिर्फ उनमें पुताई कर दी है। यह दृश्य खुद ही स्थानीय प्रशासन की संवेदनहीनता और खानापूर्ति को उजागर करता है। ऐसे हादसे के इंतजार में प्रशासन क्यों बैठा है, यह सवाल लोगों के मन में है। जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और जवाबदेही का सवाल स्थानीय विधायक और सांसद सिरोही की जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें अपना वोट देकर जीताया, उन्हीं के बुनियादी सवालों पर वे मौन हैं। जनता की मांग है कि नेताओं को खुद शहर का दौरा करना चाहिए और ऐसी व्यवस्थाओं पर नजर रखनी चाहिए जिससे उनकी छवि और जवाबदेही बनी रहे, ना कि सिर्फ त्योहारों पर बधाई संदेश देकर इतिश्री कर लें। सरकारें बदलती हैं, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही और पालिका की मनमानी जस की तस रहती है।
क्या यही हैं अच्छे दिन?
जिस ईमानदार प्रशासन, जवाबदेही और विकास के सपने सिरोही की जनता ने देखे थे, वह इस दिखावटी रोशनी में कहीं खो गए हैं। शहर का दिल कहे जाने वाले पैलेस रोड के टूटे गमले और गड्ढे प्रशासन की प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े करते हैं। आम लोग सवाल करते हैं कि क्या दीवाली की सजावट और रोशनी उन्हीं के लिए है या सिर्फ टेंडर और कमीशन की राजनीति के लिए?
निष्कर्ष
दीपावली का पर्व प्रकाश, सत्य और उम्मीदों का प्रतीक है, मगर सिरोही में इस बार यह पर्व प्रशासन की मुश्किलों और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी के बीच पीड़ाओं की रात बन गया है। जनता को चाहिए कि सजावट की चकाचौंध से हटकर असल समस्याओं को उठाएं और एक जवाबदेह एवं संवेदनशील प्रशासन की मांग करें, ताकि सच में शहर जगमगाए—सिर्फ दीवारों, गलियों और लाइटों से नहीं, बल्कि जनता की संतुष्टि और खुशहाली से भी।