कमीशनखोरी से बनी सड़कें गड्ढों में तब्दील: सिरोही में भ्रष्टाचार की पोल खोलती बरसात

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बरसात का मौसम आते ही सिरोही शहर की सड़कों की सूरत-बयां बदल चुकी है। जिन सड़कों पर कभी विकास के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, वे आज जगह-जगह गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं। हाल यह है कि पैदल चलना तक मुश्किल हो रहा है, दोपहिया वाहन चालक तो हर कदम पर हादसों के डर से गुजर रहे हैं। यह स्थिति केवल प्राकृतिक आपदा या मौसम की मार का परिणाम नहीं है, बल्कि उन भ्रष्टाचार की परतों का खुलासा है जो ठेकेदारों और जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से तैयार हुई हैं। करोड़ों रुपये का बजट स्वीकृत हुआ, सड़कें बनाई गईं, फिर उद्घाटन कर चमक-दमक से जनता को दिखाया गया कि विकास हो रहा है, लेकिन पहली ही बरसात ने इन सड़कों की गुणवत्ता की सच्चाई उजागर कर दी। एक साल भी टिक न पाने वाली ये सड़कें इस बात का प्रमाण हैं कि काम केवल कमीशन के लिए हुआ, जनता की सुविधा और सुरक्षा के लिए नहीं।

शहर के मुख्य मार्गों से लेकर छोटी गलियों तक यही नजारा है। बरसात के पानी से भरे गड्ढों में कई बार सड़क का और गड्ढे का फर्क तक नहीं समझ आता, जिससे दुर्घटना का खतरा और बढ़ जाता है। रोजमर्रा की जिंदगी जीने वाले लोगों के लिए यह सबसे बड़ा संकट बन गया है। बच्चे स्कूल जाने से डरते हैं, मजदूर और दफ्तर जाने वाले लोग हर दिन इन गड्ढों से जूझते हैं और वाहन चालक किसी बड़ी दुर्घटना से बचने के लिए सावधानी बरतते हुए परेशानियों का सामना कर रहे हैं। आम जन की यह परेशानी खुले तौर पर बताती है कि विकास की परिभाषा केवल कागजों और भाषणों में सिमट कर रह गई है, जबकि हकीकत हर कदम पर लोगों की सुरक्षा को खतरे में डाल रही है।

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सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये सब घटनाएं और परिस्थितियां किसी से छिपी हुई नहीं हैं। प्रशासन, जिम्मेदार अधिकारी और सरकार सभी देख रहे हैं कि जनता किस हाल में है और सड़कें किस हाल में हैं लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस कदम उठाया नहीं जा रहा। भ्रष्टाचार का यह तंत्र इतना मजबूत हो चुका है कि जनता की आवाज भी उसमें दब जाती है। सड़कें टूटती हैं, गड्ढों में तब्दील हो जाती हैं और एक-दो मरम्मत के नाम पर फिर से वही घटिया धंधा शुरू हो जाता है। समस्या सिरोही तक सीमित नहीं है, बल्कि जिले और पूरे राज्य में यही हाल है। हर जगह सड़कें दम तोड़ चुकी हैं और हर जगह कमीशनखोरी विकास पर भारी पड़ रही है।

जरूरी है कि इस व्यवस्था में बदलाव आए और जनता अपने हक की आवाज बुलंद करे। ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत का हिसाब लिया जाए, निर्माण कार्यों में पारदर्शिता लाई जाए और टैक्स के पैसों से बनी इन सड़कों की असलियत पर सवाल पूछा जाए। जब तक जिम्मेदारी तय नहीं होगी और दोषियों पर कठोर कार्रवाई नहीं होगी, तब तक बरसात हर बार यही कहानी दोहराती रहेगी और सड़कें हर साल हादसों का सबब बनती रहेंगी। सिरोही की टूटी सड़कों पर बिखरी पड़ी यह कहानी सिर्फ लापरवाही की नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार की गहरी जड़ का प्रमाण है। अब समय आ गया है कि जनता और सरकार मिलकर इस बदलते हालात पर ध्यान दें, वरना विकास का सपना हमेशा की तरह सिर्फ नारों और भाषणों तक ही सीमित रह जाएगा।

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