खनन के खिलाफ पिण्डवाड़ा में फूटा जनाक्रोश, ग्रामीण बोले- पर्यावरण बचेगा तो भविष्य बचेगा

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सिरोही। पिण्डवाड़ा की ऐतिहासिक अरावली पहाडय़िों पर प्रस्तावित चूना पत्थर खनन परियोजना ने ग्रामीणों में गहरा आक्रोश और चिंता पैदा कर दी है। सैकड़ों ग्रामीण भीमाना ग्राम पंचायत भवन में जमा होकर एकजुट होकर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वे अपने खेत-खलिहान, जलस्रोतों और जीवन की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर खनन को नहीं आने देंगे। पर्यावरणीय विनाश, जलस्तर घटने और जैव विविधता के नुकसान का खतरा बढऩे के बीच, ग्रामीणों ने साफ चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने उनकी आवाज़ को न सुना और खनन को मंजूरी दी, तो उनका संघर्ष सडक़ से लेकर उच्चतम सरकारी स्तर तक पहुंच जाएगा। यह सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की लड़ाई है। इस पूरे क्षेत्र में खनन के खिलाफ गर्माता आंदोलन सरकार के सामने विकास और संरक्षण के बीच एक निर्णायक परीक्षा बन चूका है।

सिरोही। हितेन्द्रसिंह चौहान/ मिरर न्यूज।
पिण्डवाड़ा तहसील क्षेत्र की ऐतिहासिक अरावली पहाडिय़ों को चूना पत्थर खनन से बचाने के लिए ग्रामीणों ने आवाज बुलंद की है। 20 सितम्बर को भीमाना ग्राम पंचायत भवन में आयोजित पर्यावरणीय जनसुनवाई में सैकड़ों ग्रामीणों ने एक स्वर में प्रस्तावित खनन परियोजना का विरोध करते हुए कहा कि यह परियोजना गांवों के खेत-खलिहानों, जंगलों, जलस्रोतों और मानव जीवन के लिए गंभीर खतरा है। ग्रामीणों ने कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने इस योजना को मंजूरी दी तो उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा। भीमाना पंचायत में हुई यह जनसुनवाई खनन कंपनी की ओर से 800.9935 हैक्टर भूमि पर चूना पत्थर खनन के प्रस्ताव को लेकर आयोजित की गई थी। इस दौरान वाटेरा, रोहिड़ा, भारजा, तरुंगी, डोलीफली, पिपेला और खाराडोली गांवों से पहुंचे सैकड़ों ग्रामीणों ने च्च्खनन नहीं करने देंगेज्ज् के नारों के साथ परियोजना का विरोध जताया। ग्रामीणों ने व्यक्तिगत और सामूहिक आपत्तियां दर्ज कराते हुए कहा कि यदि यह परियोजना लागू हुई तो क्षेत्र की जैव विविधता, कृषि और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भारी संकट आ जाएगा।
जनसुनवाई बनी विरोध का मंच
जनसुनवाई में एडीएम राजेश गोयल ने बताया कि ग्रामीणों की सभी आपत्तियां दर्ज कर ली गई हैं और पूरी रिपोर्ट राज्य स्तर तक भेजी जाएगी। हालांकि ग्रामीणों ने प्रशासन पर जनसुनवाई की सूचना छिपाने का गंभीर आरोप लगाया। उनका कहना था कि सुनवाई को गुप्त रूप से आयोजित किया गया ताकि क्षेत्र की जनता की भागीदारी सीमित रहे। ग्रामीणों ने कहा कि कुछ अधिकारी और नेता निजी कंपनी के दबाव में काम कर रहे हैं, जिससे जनता के अधिकारों से समझौता हो रहा है। विरोध में शामिल ग्रामीणों ने कहा कि इस परियोजना से न केवल मिट्टी की उपजाऊ परत खत्म होगी उत्पादन भी प्रभावित होगा। डीज़ल चालित भारी वाहनों से वायु प्रदूषण बढ़ेगा, जिससे दमा, कैंसर और सांस की गंभीर बीमारियां फैलेंगी। गर्भवती महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सबसे अधिक प्रभावित होंगे। ग्रामीणों ने कहा कि खनन से भूजल स्तर नीचे जाएगा, कुएं और बावडय़िां सूख जाएंगी, जिससे सिंचाई और पेयजल संकट पैदा होगा। जंगलों के उजडऩे से जंगली जीवों — तेंदुए, सियार, खरगोश और अनेक पक्षियों—का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाएगा। पेड़ों की कटाई और ब्लास्टिंग से भूमि की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होगी। क्षेत्र की पारिस्थितिक संतुलन को भारी नुकसान होगा।
राष्ट्रपति तक पहुंची ग्रामीणों की गुहार
खनन परियोजना के खिलाफ विरोध का सिलसिला केवल पंचायत स्तर तक सीमित नहीं रहा। 23 सितम्बर को पिण्डवाड़ा क्षेत्र के सैकड़ों ग्रामीण सिरोही जिला मुख्यालय पहुंचे और जिला कलक्टर को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में ग्रामीणों ने मांग की कि इस परियोजना को तत्काल निरस्त किया जाए। ग्रामीणों का कहना था कि यह परियोजना न केवल पर्यावरण बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचे के लिए भी खतरा है। पहाड़ खत्म होंगे तो खेत-खलिहान बर्बाद होंगे और आदिवासी समाज का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि प्रशासन ने अनुमति दी तो वे आंदोलन को राज्य स्तर पर ले जाएंगे। वाटेरा सरपंच सविता देवी ने कहा कि यह सिर्फ खनन का विरोध नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की लड़ाई है।
नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एकजुट अपील
विरोध में ग्राम पंचायतों के साथ विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के नेता भी शामिल हुए। वाटेरा सरपंच सविता देवी, समाजसेवी तुषार, पंचायत समिति सदस्य बलवंत चौधरी, भाजपा नेता रतन लाल गरासिया, कांग्रेस नेता राकेश देवासी, शिवसेना नेता भरत राजपुरोहित, उड़ता सूरज संगठन के भरत चौधरी सहित कई स्थानीय प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर परियोजना का विरोध किया। इन नेताओं ने कहा कि अरावली की पहाडिय़ों को खनन की भेंट नहीं चढऩे दिया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासनिक तंत्र निजी कंपनियों के दबाव में काम कर रहा है, जबकि यह क्षेत्र जैव विविधता वाला संवेदनशील इलाका है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण को बचाने के लिए आंदोलन हर हाल में जारी रहेगा।
एसडीएम कार्यालय के बाहर प्रदर्शन
ग्रामीणों ने खनन परियोजना के विरोध में 14 अक्टूबर को एसडीएम कार्यालय पिण्डवाड़ा के बाहर भी जोरदार प्रदर्शन किया। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन एसडीएम नरेंद्र जांगिड़ को सौंपा और प्रशासन से मांग की कि वे जनता की राय जाने बिना कोई निर्णय न लें। ग्रामीणों ने कहा कि परियोजना लागू होने पर उन्हें अपनी ही जमीनों और घरों से बेदखल होना पड़ सकता है। वहीं, एसडीएम जांगिड़ ने उपस्थित हजारों ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि प्रशासन ने खनन को लेकर किसी भी ग्रामीण की खातेदारी भूमि या आवास से संबंधित कोई नोटिस जारी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि सरकार जनता की भावनाओं का सम्मान करती है और निर्णय से पहले ग्रामीणों की राय को गंभीरता से सुना जाएगा। एसडीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि ग्रामीणों की ओर से दिए गए ज्ञापन को उच्चस्तरीय अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा और आगे की प्रक्रिया नियमानुसार होगी। उन्होंने ग्रामीणों से शांति बनाए रखने की अपील की। प्रशासन की इस प्रतिक्रिया के बाद ग्रामीणों ने अपना धरना समाप्त कर दिया। इस मौके पर डीवाईएसपी भंवरलाल, तहसीलदार शंकरलाल परिहार, सीआई गंगाप्रसाद और अन्य अधिकारी मौजूद रहे।
खनन से पर्यावरणीय खतरे पर विशेषज्ञों की राय
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, सिरोही जिले का पिण्डवाड़ा क्षेत्र अरावली पर्वतमाला का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां की चूना पत्थर पट्टियां भूजल पुनर्भरण के साथ जैव विविधता का प्रमुख स्रोत हैं। बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियाँ न केवल जलस्तर को घटाएंगी बल्कि क्षेत्र में तापमान वृद्धि, मृदा अपक्षय और पारिस्थितिक असंतुलन को भी जन्म देंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि खनन के लिए इस्तेमाल होने वाले विस्फोट और भारी मशीनरी स्थानीय पारिस्थितिकीय प्रणाली को कमजोर करेंगे। इससे वनों की कटाई, ध्वनि प्रदूषण, और धूलकण उत्सर्जन बढ़ेगा जो ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। पिण्डवाड़ा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में यह सामाजिक‑आर्थिक अस्थिरता बढ़ा सकता है।
यह विकास नहीं, विनाश की दिशा
ग्रामीणों के बीच यह भावना स्पष्ट है कि इस परियोजना का उद्देश्य विकास नहीं बल्कि निजी लाभ है। गांव के वरिष्ठ नागरिक गजाराम घांची ने कहा, खनन कुछ लोगों को फायदा देगा, पर इसका खामियाजा आने वाली पीढय़िों को भुगतना पड़ेगा। वहीं भारजा गांव के किसान खेता राम गमेती ने कहा कि हमारी ज़मीन, हमारा पानी, और हमारा आकाश — सब कुछ खतरे में है। सरकार को हमारी नहीं, कंपनी की चिंता है। महिलाओं ने भी सक्रिय रूप से विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। मेवा बाई और पदमाराम घांची की पत्नी ने कहा कि पहले ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं, अगर पहाड़ खत्म कर दिए गए तो यहां जीवन असंभव हो जाएगा।
पहाड़ों की पुकार-आंदोलन का संदेश
ग्रामीणों का यह आंदोलन अब केवल एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक जनआंदोलन का रूप ले चुका है। पंचायत-दर-पंचायत लोगों में चेतना फैल रही है कि प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा बिना संघर्ष के संभव नहीं। वाटेरा सरपंच सविता देवी ने कहा, हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन ऐसा विकास हमें मंजूर नहीं जो हमारे अस्तित्व को मिटा दे। उन्होंने बताया कि ग्रामीण शांति से धरना और ज्ञापन देंगे, लेकिन यदि प्रशासन ने अनुमति दी तो यह लड़ाई सडक़ों तक जाएगी।
भीमाना सरपंच हेमेन्द्र सिंह ने बताया कि पंचायत ने कोई अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं है जो गांव चाहेगा वह ही होगा। पुखराज प्रजापत भारजा सरपंच ने कहा कि हमारे क्षेत्र में खनन नहीं होने देंगे। हमने विरोध में ग्रामीणों के संग आपत्ति दर्ज करवाई है। शिवसेना नेता भरत राजपुरोहित ने कहा कि यह क्षेत्र अरावली की पहचान है और इसे बचाना सभी की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हम अपने पहाड़ों को माइनिंग कंपनियों की भेंट नहीं चढऩे देंगे।

सरकार के सामने चुनौती: विकास और संरक्षण के बीच संतुलन
पिण्डवाड़ा की यह खनन परियोजना सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा बन गई है। एक ओर उद्योग और निवेश को बढ़ावा देने की बात है, तो दूसरी ओर ग्रामीणों की आजीविका और पर्यावरण संरक्षण का सवाल। यदि प्रशासन जनता की राय और पर्यावरणीय नियमों का पालन किए बिना खनन की अनुमति देता है, तो इससे सामाजिक असंतोष बढऩे की संभावना है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को खुले संवाद और पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से ही समाधान निकालना चाहिए। निष्कर्ष: पिण्डवाड़ा की धरती पर निर्णय का इंतजार फिलहाल पिण्डवाड़ा क्षेत्र के हजारों ग्रामीण अपने पहाड़ों और पर्यावरण को बचाने की ठान चुके हैं। प्रशासन और सरकार के सामने अब बड़ा प्रश्न यही है कि आखिर वह निर्णय किसके पक्ष में लेगी — विकास के नाम पर खनन की कंपनियों के या उस जनता के, जिसने अपने खेतों और पहाड़ों को पीढियों से संजोया है। भले ही विरोध अभी शांतिपूर्ण है, लेकिन ग्रामीणों की दृढ़ता इस बात का संकेत है कि उनका संघर्ष लंबा चलेगा। उनकी एकजुट पुकार है— पहाड़ बचेंगे, तो जीवन बचेगा।

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