श्री राम झरोखा मंदिर जमीन विवाद: फर्जी वसीयत से रची साजिश! 

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Mirror News

सिरोही का ऐतिहासिक श्री राम झरोखा मंदिर श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है लेकिन इस आस्था के प्रतीक पर संकटो के बादल छा चुके है। मंदिर के पूर्व महंत जयराम दास की वसीयत में किसे वारिस बनाया गया और मंदिर की चल-अचल संपत्तियों की जिम्मेदारी किसके हाथों में सौंपी गई, यह सब जानना जरूरी है। आखिर मंदिर की जमीन किसने बेची और किसने खरीदी? इन सभी सवालों के जवाब इस वीडियो में हैं — पूरी सच्चाई जानने के लिए इसे अंत तक जरूर देखें। साथ ही खबर को लाइक, शेयर और सबक्राइब भी करे। ताकि आगे भी ऐसी कई खबरें आप देख पाए। सात साल पहले अप्रैल 2018 में सिरोही मिरर न्यूज मैगज़ीन में यह खबर प्रकाशित हुई थी जिसमे मंदिर की बेशकीमती जमीन बेचे जाने का गंभीर मामला सामने आया है। उस समय प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि श्री राम झरोखा मंदिर के वर्तमान महंत सीताराम ने श्री राम लक्ष्मण मंदिर पैलेस रोड सिरोही की जमीन को विक्रम कुमार जैन के नाम रजिस्ट्री करवाकर बेच दिया, जिसके बाद यह मामला धार्मिक आस्था और ट्रस्ट प्रबंधन दोनों स्तरों पर बड़ा मुद्दा बन गया। देवस्थान बोर्ड और श्री राम झरोखा मंदिर नियंत्रण एवं सलाहकार समिति ने इस बिक्री को नियम विरुद्ध मानते हुए इसका विरोध दर्ज कराया। नियंत्रण एवं सलाहकार समिति ने बहुमत के आधार पर समिति के मनोनीत सदस्य गौरव सिंह काशिवा की ओर से व देवस्थान बोर्ड द्वारा भी संबंधित पक्षों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाया गया। मुकदमे में मुख्य रूप से यह आरोप लगाया गया है कि महंत सीताराम ने सोल ट्रस्टी की वसीयत और 11 सदस्यीय समिति की व्यवस्था की अनदेखी करते हुए अपने स्तर पर मंदिर की संपत्ति का सौदा कर दिया, जबकि उन्हें केवल संरक्षक की भूमिका निभानी थी, न कि एकमात्र स्वामी की तरह फैसला लेना था। यह मुकदमा फिलहाल न्यायालय में विचाराधीन है। इसी क्रम में सिरोही का ऐतिहासिक श्री राम झरोखा मंदिर पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है, कारण — मंदिर की बेशकीमती भूमि का विवादित विक्रय। ताज़ा जानकारी के अनुसार, वर्तमान महंत सीताराम दास ने नगर परिषद सिरोही के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से मंदिर की भूमि बेच दी है।सूत्रों के अनुसार, मंदिर परिसर के पीछे एलआईसी रोड पर लगभग एक बीघा अठारह बिस्वा भूमि को आठ हिस्सों (पट्टों) में विभाजित कर निजी व्यक्तियों को बेचा गया है।मगर इस विक्रय की असली कहानी इससे कहीं गहरी है। दरअसल, मंदिर के पूर्व महंत जयराम दास ने 20 मार्च 2001 को एक वसीयत (इच्छापत्र) लिखी थी जिसमें स्पष्ट उल्लेख था कि मंदिर की कोई भी संपत्ति एकल ट्रस्टी (सोल ट्रस्टी) द्वारा समिति की अनुमति के बिना बेची या किसी को हस्तांतरित नहीं की जा सकती। साथ ही, वसीयत में 11 सदस्यों की एक नियंत्रण एवं सलाहकार समिति भी गठित की गई थी, जिसका दायित्व ट्रस्ट की सुरक्षा और निर्णय लेने में सामूहिक भूमिका निभाना था। इस वसीयत की शर्तों के अनुसार, महंत सीताराम अकेले मंदिर की भूमि बेचने के अधिकारी नहीं हैं। इसके बावजूद, हाल ही में उनके द्वारा आठ पट्टों का विक्रय किया गया, जिसने सवालों की बौछार खड़ी कर दी। जब नियंत्रण एवं सलाहकार समिति ने सूचना का अधिकार (RTI) के तहत नगर परिषद सिरोही से दस्तावेज मांगे, तो परिषद् अधिकारियों ने कोई जानकारी देने से मना कर दिया साथ ही गोल माल जवाब दे रहे है। आयुक्त से इस पर बात करने के बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इससे यह आशंका और मजबूत हो गई कि परिषद और महंत के बीच मिलीभगत से यह सौदेबाजी की गई है।सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि जिन विक्रय पत्रों में वसीयत का हवाला दिया गया है, उनमें 8 मार्च 2001 की वसीयत का उल्लेख किया गया है, जबकि असली वसीयत 20 मार्च 2001 को निष्पादित हुई थी। यह अंतर दर्शाता है कि संभवतः एक फर्जी वसीयत तैयार कर इन पट्टों का सौदा किया गया है।सूत्रों के अनुसार, मंदिर की भूमि जिन नामों पर बेची गई है, उनमें प्रमुख हैं — पहला पट्टा तारा कंसारा, धर्मेश कंसारा, भानु प्रताप सिंह दूसरा पट्टा कुलदीप सिंह हरि सिंह डोरा तीसरा पट्टा पार्वती बेन एम मगनलाल रावल और विनोद मालवीय, मदन लाल मालवीय (तीन पट्टे) सातवा पट्टा किशोर कुमार चोपड़ा, गणपत लाल और आठवा पट्टा पुरोहित हरीश, किराबाई, किका भाई के नाम है। इस विवाद की जानकारी सांसद लुंबाराम चौधरी और स्थानीय विधायक व मंत्री ओटाराम देवासी को भी समिति के सदस्यों द्वारा दी गई है, लेकिन अब तक किसी ने हस्तक्षेप नहीं किया। इसके आलावा समिति के सदस्यों ने जिला कलेक्टर सिरोही से मिलकर इस गंभीर मामले से अवगत कराया लेकिन वहां भी कोई विशेष सफलता नहीं मिली। समिति के सदस्यों ने यह भी खुलासा किया है कि उन्हें धमकियाँ मिल रही हैं, ताकि वे इस मामले को दबा दें। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह सिर्फ ज़मीन का सौदा नहीं, बल्कि आस्था के साथ किया गया खिलवाड़ है। सवाल यह है कि जब दस्तावेज़ और वसीयत साफ़ तौर पर नियमों का उल्लंघन दर्शा रहे हैं, तब प्रशासन और बड़े नेता चुप क्यों हैं?

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